हरियाणा

बिलकिस बानो सामूहिक बलात्कार, हत्त्याकांड के मुजरिमों की रिहाई उपरांत माल्यार्पण अपराध को बढ़ावा नहीं ? सैनी

सत्य ख़बर,गुरुग्राम, सतीश भारद्वाज:

देश की सर्वोच्च अदालत ने कहा कि देश एक और घटना का इंतजार नहीं कर सकता, बलात्कार व हत्याकांड मामले पर शीर्ष अदालत ने स्वतः संज्ञान लेते हुए कदम उठाया और चिकित्सकों की सुरक्षा सुनिश्चित करने के लिए एक कार्यबल का गठन किया। जिसमें चिकित्सकों के साथ-साथ मरीजों के प्रतिनिधि भी शामिल होंगें, सुप्रीम कोर्ट ने यह भी कहा कि इस दिशा में वास्तविक सुधार के लिए बलात्कार व हत्या जैसी किसी और घटना का इंतज़ार नहीं किया जा सकता है !
सुप्रीम कोर्ट ने डॉक्टर के साथ हुए वहशीपन जानवरों जैसे कृत्य पर सख्त रुख अपनाते हुए पश्चिम बंगाल सरकार की खिंचाई की और पूछा कि प्राथमिकी दर्ज कर कार्यवाही करने में देरी की वजह क्या रही और पुलिस क्या कर रही अपनी ड्यूटी भूलकर ?
शीर्ष अदालत ने देशभर में प्रदर्शन कर रहे डॉक्टरों से अपील करते हुए कहा कि उन्हें अदालतों पर विश्वास रखना चाहिए और अपने काम पर लौट जाना चाहिए। क्योंकि उनके हड़ताल पर जाने से समाज के उन वर्गों पर असर पड़ता है, जिन्हें चिकित्सीय देखभाल की सख्त जरूरत है।
प्रधान न्यायाधीश डीवाई चंद्रचूड़, न्यायमूर्ति जेबी पारदीवाला और जस्टिस मनोज मिश्रा की पीठ ने अपील करते हुए कहा कि अपने कर्तव्यों से दूर न जाएं डॉक्टर्स हम यह सुनिश्चित करने के लिए ही यहां हैं कि उनकी सुरक्षा और सरंक्षण राष्ट्रीय चिंता का विषय है,
आम आदमी पार्टी नेता माईकल सैनी ने अदालत की इस पहल का स्वागत करते हुए कहा कि शीर्ष अदालत को भी स्वतः संज्ञान लेने में एक सप्ताह का समय लगा जिसपर शीघ्र संज्ञान लेने की आवश्यकता होनी चाहिए, अक्सर परिस्थितियों के बेकाबू होने पर ही क्यों ऐसी मिसालें देखने को मिलती हैं और भी अनेकों जघन्य अपराधों को घटित होते हुए देखा है देश ने तो उन मामलों में अदालतों की ऐसी प्रतिक्रिया देखने में कम क्यों नजर आयी क्या उनके लिए उग्र प्रदर्शन नहीं हुए इसलिए शीर्ष अदालत तक पहुंचने के खर्च व जटिलताओं से वह पार नहीं पा सके इसलिए आखिर क्यों मध्यरात्रि को एक दलित बेटी का दाह-संस्कार कर दिया गया। अनैतिक रूप से और क्यों मणिपुर की घटना राष्ट्रीय चिंता का विषय नहीं लगी क्या यह डॉक्टर हैं और रईस घरों से ताल्लुक रखते हैं, और जो सरकारों को बाध्य कर सकने का दम रखते हैं, इसलिए इनका विषय राष्ट्रीय चिंता का विषय लगने लगा, क्या आम पीड़ित महिलाएँ न्याय की हकदार नहीं आखिर क्यों नहीं उनके लिए भी अदालतों से न्याय प्राप्त करना सुगम, सरल, सुलभ बनाया गया,
सैनी ने कहा कि एक डॉक्टर बलात्कार व हत्याकांड को राष्ट्रीय चिंता का विषय कह रही हैं, वहीं दूसरी ओर अदालतें किन्हीं अज्ञात प्रभावों अथवा कारणों से बिलकिस बानो जैसे केस में सजायाफ्ता मुजरिमों को जेल से रिहा कर रही हैं, जिनका धार्मिक संगठनों के लोग माल्यार्पण और महिमामंडन करते हैं तो क्या यह अपराध को बढ़ावा देने जैसा नहीं लगता ?
सजायाफ्ता मुजरिम डेरा प्रमुख रामरहीम को पैरोल पर पैरोल दिया जाना भी कानून व्यवस्था का मखोल उड़ाने जैसा नहीं लगा और क्यों इसमें सरकार की भूमिका संदिग्ध लगती है फिर इस कड़ी में अब तो आशाराम का भी नाम शामिल हो गया, विचारणीय प्रश्न यह है कि जब ऐसे लोग जिनपर जघन्य अपराधों को सिद्ध किया जा चुका है और जो समाज में कतई रहने लायक नहीं हैं उन्हें पैरोल पर पैरोल ?
माईकल सैनी कहते हैं कि जो समाज के नासूर बन गए हैं ऐसे अपराध का पर्याय बन चुके लोगों का स्थान जेल है पैरोल नहीं यदि उन्हें ऐसी तमाम सुविधा अनुसार सुविधाएँ दी जाती रहेंगी तो अपराध होना भी नहीं थमेगा इसलिए अदालतें चिंतन करें जैसा कि सर्वोच्च न्यायालय ने कहा है सरकार तो केवल अपने गठन के बारे ही सोचती हैं फिर किन्हीं भोगियों का ही उपयोग करना पड़े ।

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